Saturday, March 20, 2010
ज़माना बहुत बद-गुमान हो रहा है,
ज़माना बहुत बद-गुमान हो रहा है,
किसी शख्स का इम्तिहान हो रहा है,
सुरीली सदायें हैं एक शोख की सी,
इलाही ! ये जलसा कहाँ हो रहा है,
बहुत हसरत आती है मुझ को ये सुन कर,
किसी पर कोई मेहरबान हो रहा है,
तीरे ज़ुल्म-ए-पिन्हाँ अभी कौन जाने?
फ़क़त आसमान आसमान हो रहा है,
इन आँखों ने इस दिल का क्या भेद खोला?
के मुज़्तर मेरा राजदान हो रहा है,
सुनूँ क्या खबर जशन -ए-इशरत का कासिद ?
जहां हो रहा है वहां हो रहा है,
वो हाल-ए-तबीयत जो बरसों छुपाया,
हर एक शख्स से अब बयान हो रहा है,
कोई उड़ के आया, कोई छुप के आया,
पषेमान तेरा पासबान हो रहा है,
कहीं दो घडी आप शबनम में सोये,
जो रुख पर अर्क दूर-फिशां हो रहा है,
ये बेहोशियाँ “दाग”, ये ख़्वाब-ए-घफ्लत,
खबर भी है जो कुछ वहां हो रहा है
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1 comment:
Nice one!! sahi mein zamana bahut badgumaan hi nahin bad-dimaag bhi ho raha hai!
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