Thursday, December 16, 2010

हवा

तू हवा है
गर्मी की हो 
या सर्दी की
पर
तू हवा है 
हर
मौसम  की  
जिसे ना कोई
देख  सका
ना कोई 
देख
सकेगा
सिर्फ महसूस
कर सकेगा
के तू हवा है
हर लहर 
में 
हर मौसम 
में तू 
जिस्म  को 
राहत देती  है 
इसी लिए हर कोई
तुझ से मोहब्बत 
करता है
किओं के तू 
हवा है
तू ज़िन्दगी है
तू साँस है
तू ही
मेरी जान है
और मैं तुझ 
से मोहब्बत 
करता हूँ!!


तारिक हमीद(बेवक़ूफ़)

Thursday, December 9, 2010

मै

मैं कीतना अहम् है "मै" के लीये,
मैं,
कुछ भी कर सक सकता है,
"मैं" के लीये,
मैं के आगे तू क्या है, 
तू तो बस "तू" है,
तू कुछ भी नहीं "मैं" के लीये!
तारिक हमीद(बेवक़ूफ़)

Saturday, July 31, 2010

मार्ग



I Know, Work Is In Progress................?



कल मैं कई मार्गों से गुज़रा, महात्मा गाँधी मार्ग, औरंगज़ेब मार्ग, Copernicus मार्ग इत्यादी. हर मार्ग पर काम चल रहा था, मतलब हर मार्ग प्रगति पर है. प्रगति की सीमा देखिये के भारत के 2 शासक जो अलग अलग समय में भारत पर राज किये, औरंगज़ेब और पृथ्वीराज चौहान. इतिहास में हम पृथ्वीराज को नायक और औरंगज़ेब को खलनायक के रूप में देखते हैं. आज इन दोनों शासकों के नाम पर जो मार्ग है वो एक गोल चक्कर पर आकर मिल जाता है. सदियों से हर कोई मार्ग की तलाश में कोई ना कोई मार्ग पर है. आज Delhi में Common Wealth Games को कामयाब बनाने के लिए हर मार्ग पर काम ज़ोरों पर है, हर मार्ग पर आपको मज़दूर काम करता मिल जायेगा, ये मज़दूर सिर्फ आज ही किसी मार्ग पर काम नहीं कर रहा है बल्कि जब से दुनिया बनी है तब से ही ये किसी ना किसी मार्ग को मरम्मत करता आ रहा है.







अफ़सोस होता है के इस धरती के कई हज़ार साल पुरे होने बाद भी मज़दूर का कोई मार्ग नहीं है.

तारिक हमीद(बेवक़ूफ़)

Wednesday, June 30, 2010

Digital दुनिया

बात उन दिनों की है जब मैं दिल्ली आया था, तब मैं अपने माँ, पापा और रिश्तेदारों को ख़त लिखा करता था, ख़त लिखते ही बड़ी उत्सुकता से postman का इंतज़ार करता. ख़त की शुरुवात छोटी छोटी बातों से होती थी, जैसे सेहत, मौसम, पढ़ाई और तब जाकर असल मुद्दा यानि काम की बात लिखी जाती थी. लेकिन अब, लोगों का संपर्क करने का तरीक़ा बिलकुल मशीन की तरह हो गया है- अब लोग सीधा सीधा काम की बात करते हैं जिसमे कोई भावना नहीं होती, शायद इसलिए के सब बहुत जल्दी में हैं.

अपनी ही बनाई हुई इस Digital दुनिया में क्या हमलोग बहुत तेज़ी से खुद को ही खुद से अलग नहीं कर रहे हैं ?

तारिक हमीद(बेवक़ूफ़)

Monday, May 10, 2010

आखरी ख़त

तुम्हारे आने से पहले मैं अकेला था, अब तुम्हारे जाने के बाद मैं बिलकुल ही अकेला हो गया हूँ. मुझे छोड़ के जाने का तुम्हारा वो  फैसला बिलकुल ठीक था. अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो शायद यही करता क्यूंकि ना तो वो ज़माना रहा, ना वो तुम रहे ना वो मैं रहा, ना वो एहसास रहा और ना ही वो मोहब्बत रही.प्यार करने वाले लोग, उनके प्यार के किस्से, उनकी कुर्बानियां, ये सारी बातें तो कहानियों में ही अच्छी लगती हैं और हम दोनों तो किसी कहानी का नहीं बल्कि ज़िन्दगी का हिस्सा हैं. हम दोनों अलग अलग शारीर के मालिक हैं इसीलिए दोनों ही अलग अलग सोच रखते हैं. तुम्हारी नज़र में मेरी सोच ग़लत हो सकती है बल्कि ग़लत ही है क्यूंकि आज के ज़माने में अगर कामयाब इंसान बनना है तो झूट का सहारा तो लेना पड़ेगा, हर जगह समझौता भी करना पड़ेगा. ये अलग बात है के हम दोनों के लिए कामयाबी की अलग अलग परिभाषा  है. मैं भीड़ का हिस्सा ज़रूर हूँ मगर भीड़ की तरह नहीं सोच सकता. मैं लोगों की नज़र में गिर जाऊँ तो परवाह नहीं मगर खुद को खुद की नज़र में गिरने से बचाना है मुझे. इसे तुम खुद्घर्ज़ी कहो या खुद्दारी, ये तुम पर है. मेरे लिए कामयाबी की परिभाषा यही है के सारी बुराईयों से खुद को बचा इस दुनिया से विदा लूँ. मुझे यकीन है के मेरे जाने के बाद भी लोग मुझ पर तंज़ कसेंगें, बेवक़ूफ़ कहेंगें, कहेंगें के सारी ज़िन्दगी बेवकूफी करते करते मर गया लेकिन वो सवालों का भण्डार हमेशा जिंदा रहेगा जिसे मैं छोड़ कर जाऊंगा.


ये मेरा आखरी ख़त है उसके नाम जो कभी भी मुझे समझ नहीं पाया.


हमेशा खुश रहना.


बेवक़ूफ़ 




तारिक हमीद(बेवक़ूफ़)

Thursday, April 15, 2010

शराबी

तेरी आँखों की
समंदर सी
गहराई में
जब मैं ने
ग़ोता
लगाया
तो
मौत की
डर ने
नहीं बल्के
जीने की आरजू
से छटपटाया
तेरी मुस्कुराहट
ने मुझे
आशावादी बनाया
तेरी मुहब्बत ने
मुझे
हँसना, रोना
और प्यार करना
सिखाया
तेरी जुदाई
ने मुझे
तड़पना
और
तेरी
नफरत ने
मुझे
शराबी बनाया

तारिक हमीद (बेवक़ूफ़)



Monday, March 22, 2010

बचपन की लाशें




कल मैं ने अपने बचपन को देखा बहुत सारे बच्चों में, जो India Gate के पास तालाब में नहा रहे थे. मैं चुप चाप बैठ कर उन को देखने लगा, अपना बचपन याद करने लगा. थोड़ी ही देर के बाद कुछ बच्चे तैरते हुए मेरे पास आये और मुझे भिगाने लगे. मुझे भी मज़ा आने लगा और मैं उन बच्चो की और अपने बचपन की फोटो साथ साथ खींचने लगा. उन बच्चों ने भी खूब जम कर फोटो शूटींग करवाई. बहुत देर तक ये सिलसिला चलता रहा. अब बारी थी उन बच्चों के बारे में कुछ जानने की, तो मैं ने उन से बारी बारी सवाल करना शुरू किया और जैसे जैसे मुझे मेरे सवालों का जवाब मिलता गया जाने क्यूं मेरे पैर कांपने लगे, सूरज ठीक मेरे सर के उपर  मंडराने लगा और एक अजीब सी गर्मी का अहसास होने लगा. प्यास भी लगी थी शाएद, उन बच्चो की आवाज़ मेरे कानों में सवाल बन कर घुंजने लगे. ऐसा लगने लगा जैसे वह तालाब में तैरने की वजह से ख़ुशी के मारे नहीं बल्के डूबने की वजह से चिल्ला रहे हों, चीख चीख कर कह रहे हों बचा लो मुझे बचा लो. और मैं बेबस लाचार उन को डूबता हुआ देख रहा था, बस देख रहा था. मुझे लगा जैसे मैं भी तालाब में छलांग लगा दूँ और उन बच्चों के साथ डूब के मर जाऊँ.  बच्चे अभी भी चीख रहे थे, जोर जोर से चीख रहे थे तभी किसी ने मेरे मुंह पर पानी मारा और मैं होश में आया. अब भी वो बच्चे कह रहे थे के uncle और फोटो खीचों ना, एक बच्चे ने कहा के uncle मैं उपर से Jump करता हूँ तब आप मेरी फोटो खिंच लेना.  मैं उस बच्चे की तलाब में Jump करने वाली फोटो यहाँ लगा रहा हूँ.  

















जब मैं ये सोचता हुआ घर वापिस लौट रहा था के क्यूं  मेरे दिमाग में वो ख़यालात आये? वो बच्चे तो खेल रहे थे फिर क्यूं मुझे लगा जैसे वो कुछ खो रहे हैं, कोई बहुत कीमती चीज़ उनके हाथो से निकल रही है, छुट रही है, फिसल रही है.  लेकिन वो चीज़ क्या है? क्या है वो चीज़? और ये सवाल मुझे ही क्यूं सता रहा है? और भी तो लोग थे वहां, उन में से किसी को ये क्यूं नहीं लगा या महसूस भी हुआ जो मुझे हो रहा है? उन सारे सवालों का जवाब जानने के लिए मैं ने अपनी मोटरसाइकिल मोड़ी और वापिस उसी जगह पहुँच गया जहाँ वो बच्चे खेल रहे थे. आवाज़ दे कर सब को इकठ्ठा किया और उनके साथ पास के ही पार्क में बैठ गया. वो सारे काम करने वाले बच्चे थे. कोई चाय की दुकान, कोई Embroidery के कारखाने, कोई जूता बनाने की factory या तो सड़क के किनारे छोले भठूरे के ठेले पर काम करता था. Sunday होने की वजह से ये सारे बच्चे यहाँ आ कर पुरे हफ्ते की थकान मिटा रहे थे या अपना बचपन जी रहे थे. बच्चे खुश थे और बेखबर थे दुनिया से, समाज से और महरूम थे किताब से.   

मैं उस वक़्त लाशें देख रहा था, कई कई लाशें एक साथ जो मेरे इर्द गिर्द बैठे थे. उन बच्चों की बचपन की लाशें जिसमे मेरा बचपन भी शामिल है . 












तारिक हमीद (बेवक़ूफ़)

Saturday, March 20, 2010

ज़माना बहुत बद-गुमान हो रहा है,


ज़माना बहुत बद-गुमान हो रहा है,
किसी शख्स का इम्तिहान हो रहा है,

सुरीली सदायें हैं एक शोख की सी,
इलाही ! ये जलसा कहाँ हो रहा है,

बहुत हसरत आती है मुझ को ये सुन कर,
किसी पर कोई मेहरबान हो रहा है,

तीरे ज़ुल्म-ए-पिन्हाँ अभी कौन जाने?
फ़क़त आसमान आसमान हो रहा है,

इन आँखों ने इस दिल का क्या भेद खोला?
के मुज़्तर मेरा राजदान हो रहा है,

सुनूँ क्या खबर जशन -ए-इशरत का कासिद ?
जहां हो रहा है वहां हो रहा है,

वो हाल-ए-तबीयत जो बरसों छुपाया,
हर एक शख्स से अब बयान हो रहा है,

कोई  उड़ के आया, कोई छुप के आया,
पषेमान तेरा पासबान हो रहा है,

कहीं दो घडी आप शबनम में सोये,
जो रुख पर अर्क दूर-फिशां हो रहा है,

ये बेहोशियाँ “दाग”, ये ख़्वाब-ए-घफ्लत,
खबर भी है जो कुछ वहां हो रहा है

Tuesday, February 2, 2010

ना तुम अपने ना हम अपने

ना तुम अपने ना हम अपने, 
ना ख़ुशी अपनी ना ग़म अपना,
किसे कहिये खुदा अपना,
किसे कहिये सनम अपना,

तुम्हारी भी खवाहिशें हैं,
मेरी भी तमन्नायें हैं, 
तुम्हारे नाम सब खुशियाँ,
मेरे नाम ग़म अपना, 

ना तुम अपने ना हम अपने, 
ना ख़ुशी अपनी ना ग़म अपना,
किसे कहिये खुदा अपना,
किसे कहिये सनम अपना.

Sunday, January 3, 2010

वो मेरे दोस्त का फ़ोन था.....

















मेरे एक कमरे के फ्लेट में मेरे अलावा एक चूल्हा भी रहता है जो कभी कभी जलता है, बर्तन भी हैं जो कभी कभी एक दुसरे से टकराते हैं. उनके टकराने से जो ध्वनि निकलती  है वो मुझे बहुत अपनी सी लगती  है. शायद इसलिए के कभी इसी कमरे में मेरे दोस्तों का जमावड़ा रहता था, अच्छे अच्छे पकवान बनते थे और ये बर्तन आपस टकराते रहते. पहले, चूल्हे का भगोने से, भगोने का प्लेट से, और प्लेट का चम्मच से एक रिश्ता था. सब एक दुसरे के संपर्क में रहते थे, हमेशा! अब सब अलग थलग पड़े रहते हैं. किसी का किसी से कोई संपर्क नहीं होता, सब अकेले हैं बिलकुल मेरी तरह.


ये सब लिखने की ज़रूरत आज इसलिए महसूस कर रहा हूँ कयूं  के एक अरसे के बाद मैं रसोई घर में गया और सारी चीज़ों को ग़ौर से देखने लगा. छोटे छोटे डब्बे मसाले वाले, एक नमक का, एक चीनी का, कोने में सरसों का तेल भी था. प्लेट, चम्मच, बर्तन धोने का साबुन, सभी कुछ मौजूद था मगर जिस चीज़ की ज़रूरत मुझे अभी महसूस हो रही थी और जिसके लिए मैं रसोई घर में गया था, वो कहीं नज़र नहीं आ रहा था. बहुत ढूंढा, मगर निराशा ही हाथ लगी. आखिर हार कर कुर्सी पर बैठ गया और रसोई घर की तरफ देखने लगा तभी अचानक मेरी नज़र उस पर पड़ी, वो चूल्हे के निचे छिपा था, मैं उसे टकटकी बांधे देखे जा रहा था. मैं उठा, उसकी तरफ लपका और चूल्हा हटा कर उसे अपने हाथों में ले लिया. उस मासूम सी चाकू से जिससे कभी सब्जी काटते काटते ऊँगली काट जाया करती थी, आज उसी चाकू से मैं अपनी नस काटने जा रहा था. मैं अपनी नस काटने को ही था तभी फ़ोन की घंटी बजी, फ़ोन उठाया, वो मेरे दोस्त का फ़ोन था.....

तारिक हमीद(बेवक़ूफ़)

Saturday, January 2, 2010

21st Safdar Hashmi Memorial















Stills from Charandas Chor presented by Naya theater on the occasion of 21st Safdar Hashmi Memorial Organized by SAHMAT
सच बोलने की सज़ा मौत होती है. नहीं, सिर्फ मौत ही होती है, जी हाँ यही सन्देश मिला मुझे "चरण दास चोर" देखने के बाद जो की Naya Theater द्वारा प्रस्तुत किया गया था और दिन था 1st january . ये मौक़ा था Safdar Hashmi को याद करने का. वैसे तो ये नाटक मैं पहले भी देख चूका था लेकिन इस बार इस नाटक को देखने की जो खास वजह थी वो ये के श्री हबीब तनवीर के बाद Naya Theater के कलाकार और उनकी बेटी Nagin Tanvir किस तरह इस प्रस्तुति को अंजाम देते हैं. मैं अपना कैमरा भी साथ ले गया था ताके प्रस्तुति के दौरान कुछ फोटो ले सकूँ. रंग मंच का कलाकार होने के नाते मैं बहुत ही बारीकि से नाटक को देख रहा था और खुश हो रहा था ये सोच कर के श्री हबीब तनवीर हमारे बीच ही हैं और उनको जिंदा रखने वाले हैं Naya Theater के कलाकार और उनकी बेटी. नाटक बहुत ही खुबसूरत ढंग से पेश किया गया, कलाकार जोश से भरे हुए थे, Choreography  ने नाटक को चार चाँद लगा दिया था. Chait Ram Yadav जो चरण दास चोर की और Ravi Lal Sangde सिपाही की भूमिका नाभा रहे थे, इन दोनों को अभिनय के लिए ज़ियादा नम्बर दिया जाना चाहिए. नाटक में संगीत हमेशा की तरह ही काफी अच्छा था.


नाटक ख़तम होने के बाद मेरी बात Chait Ram Yadav  जी से हुई जो की Naya Theater के बहुत ही पुराने कलाकार हैं. उन्होंने ने मुझे बताया के वो और उनके साथी कलाकार हर जगह श्री हबीब तनवीर की कमी महसूस करते हैं Rehearsal , Show , और ज़िन्दगी में. लेकिन उनकी सोच, और उनके काम को जिंदा रखना है, बल्कि जिंदा रखना ही होगा, अपने लिए, आम आदमी के लिए!

Safdar Hashmi  को और उनके काम को याद करने के लिए Sahmat हर साल 1st january को Cultural Program Organize  करता है. इस बार Naya Theater  के चरण दस चोर के अलावा बहुत सारे Progarm हुए जिसमे मदन गोपाल सिंह, विद्या शाह , Act one द्वारा गीत-संगीत की प्रस्तुति हुई और श्री हबीब तनवीर, मखदूम मोहिउद्दीन और D .D Kosambi  के बारे में किताबों का प्रदर्शन हुआ..






Still from Charandas Chor presented by Naya theater on the occasion of 21st Safdar Hashmi Memorial Organized by SAHMAT
तारिक हमीद(बेवक़ूफ़)