Thursday, October 6, 2011

किसी ने कहा

किसी बहुत ही अच्छा दोस्त था किसी का बच्चपन से, जब किसी बहुत पैसे वाला आदमी बन गया तो वो किसी से कहा के यार तेरे पास पैसा नहीं है, इसपर किसी ने कहा के तुम ने बिलकुल ठीक कहा के मेरे पास पैसा नहीं है लेकिन किसी का पैसा भी नहीं मेरे पास !!!

Friday, September 23, 2011

तनहाई


तनहाई में भी इंसान तनहा कहाँ होता है !
बेवफाई, जुदाई उनकी हमेशा साथ होता है !!!
(बेवक़ूफ़)

Wednesday, August 10, 2011

अकेला

में अकेला ही मारूंगा गर मरूँगा कभी,
साथ तू मारा भी अगर,साथ जलेगा नहीं !!
कब साथ  चला है कोई जो तू चलेगा कभी,
ख़ाक में जाना तो जिस्म को है रूह को नहीं,
कौन कहता है के तू आदमी था कभी
तू बिका है जिस तरह कीड़े भी बिकेंगें नहीं !! 
खरीद फरोख्त को ही दुनिया कहते है बेवक़ूफ़
जो बिका नहीं है  वो कभी कुछ खरीदेगा नहीं!

तारिक हमीद (बेवक़ूफ़)

Wednesday, June 22, 2011

यादें

बाबु, गुडिया, लाडो और सुमति, 
कयूं इनकी यादें है सताती,
WINGS से शुरू हुआ था ये किस्सा,
कयूं कोईं इसका अंत नहीं कर पातीं, 
Sam, Hima और सारे मेरे परिवार,
कयूं इनकी यादें मेरे पीछे हैं आतीं,
खोया है कुछ तो पाया भी बहुत है,
कयूं ये यादें यादें ही रह जातीं, 
बेवक़ूफ़ कि बेवकूफी तो देखिये,
सब साथ हैं, ये समझ ही नहीं आती!!

तारिक़ हमीद (बेवक़ूफ़) 

Thursday, March 24, 2011

शाम

सिर्फ एक ख़ूबसूरत शाम चाहिए
शाम हो मेरी,ये इत्मीनान चाहिए
इधर, उधर ना कहीं और जाऊँ
के बस अब थोड़ा आराम चाहिए

उठूँ सुबह तो दीदार रे  शाम हो
मुस्कुराहट होटों पर आँखों में प्यार हो
देखता रहूँ शाम को शाम तक 
के बस ऐसा एक हमनवां चाहिए 

अब ना पीना हो शाम को 
दिल ना तरसे अब किसी जाम को
नशा हो तो सिर्फ मोहब्बत का 
वो शाम जिसमे पूरी ज़िन्दगी चाहिए 

तारिक हमीद (बेवक़ूफ़)  

Monday, March 21, 2011

माँ की तस्वीर

घर पर मजमा लगा हुआ है, सारे लोग माँ से मिलने आये हुए हैं. काफी दिनों के बाद माँ आई है न इसीलिए. करीब 2 साल के बाद और आई भी है तो सिर्फ 1 घंटे के लिए. इस छोटे से वक्फे में हर कोई माँ से जी भर के मिलना चाहते हैं और माँ भी. 

मेरी अजीब से कैफियत हो रही है, खुश भी हूँ के माँ आई है और खुश नहीं भी हूँ के माँ सिर्फ एक घंटे के लिए आई है और लोग उनको घेरे बैठे हैं जब के माँ को मेरे साथ होना चाहिए. आखिर मुझे भी तो माँ से बातें करनी हैं, उनके गोद में सर रख कर सोना है, इन 2 सालों में उन्हों ने क्या किया ये पूछना है और मैं ने क्या किया ये बताना है. बड़ी हिम्मत कर के जब मैंने माँ से कहा के क्या आप सिर्फ सबसे मिलती रहेंगीं? मुझे भी बहुत सारी बातें करनी है तो इसपर माँ ने कहा के तुम तो मेरी बेटी हो, तुम से मिलती ही रहूँगीं! मैं रो पड़ी, माँ ने मेरे आसूं पोछते हुए कहा के अच्छा बाबा जाने से पहले मैं 1 मिनट के लिए सिर्फ तुम्हारे साथ बैठूंगी और ये कह कर माँ फिर लोगों के बीच चली गेई. मैं रोते हुए अपने कमरे में चली गयी ये कहते हुए के सिर्फ 1 मिनट! मेरे लिए सिर्फ 1 मिनट!! और खूब रोने लगी.

सुबह उठी तो मेरा तकिया आंसुयों से भीग चूका था. समझ नहीं पा रही थी के मैं रो क्यूं रही थी? बहुत याद करने की कोशिश की के शाएद कोई बुरा ख्वाब तो नहीं देखा? लेकिन याद नहीं आया. 

रोज़ की तरह जब मैंने माँ की तस्वीर देखी जो दीवार पर टंगी है और उस तस्वीर से माँ कभी भी बाहर नहीं आ सकती!!     

तारिक हमीद (बेवक़ूफ़) 

Thursday, January 20, 2011

मुआवज़ा

कुछ बक़ाया करती है ना कुछ उधर देती है,
दुकान ग़रीबी को कब, कोई इख्तेयारदेती है !

अपना क़र्ज़ वसूलने चले आते है, तीस दिन,
पहली तारीख हमें जब, अथ में पगार देती है !

यहाँ तो ज़िन्दगी से लड़ते रहते हैं, सातों दिन,
ज़िन्दगी कब रहम खाकर, हमें इतवार देती है !

दाल-सब्जी का ज़ायेका, मेरी भूक क्या जाने,
ये तो रोटी नमक खाकर, दिन गुज़ार देती है !

हम तो किसी भी खबर का हिस्सा नहीं बनते, 
हम जैसों को ज़िन्दगी, चुपचाप मार देती है !

काश, मैं भूका ही मरुँ तो घर का भला हो, 
सुना है यूँ मरने पर, मुआवज़ा सरकार देती है!!

-अरमान 

Friday, January 7, 2011

वक़्त, साँसें, खुशबु

वक़्त, साँसें, खुशबु,
वक़्त काट ही जाता है, 
साँसें भी ले ही लेता हूँ, 
पर ये खुशबु, 
कम्बखत, 
है के,
तेरी कमी का
एहसास,
दिला ही देती है.
Bewakoof :-(