Thursday, March 24, 2011

शाम

सिर्फ एक ख़ूबसूरत शाम चाहिए
शाम हो मेरी,ये इत्मीनान चाहिए
इधर, उधर ना कहीं और जाऊँ
के बस अब थोड़ा आराम चाहिए

उठूँ सुबह तो दीदार रे  शाम हो
मुस्कुराहट होटों पर आँखों में प्यार हो
देखता रहूँ शाम को शाम तक 
के बस ऐसा एक हमनवां चाहिए 

अब ना पीना हो शाम को 
दिल ना तरसे अब किसी जाम को
नशा हो तो सिर्फ मोहब्बत का 
वो शाम जिसमे पूरी ज़िन्दगी चाहिए 

तारिक हमीद (बेवक़ूफ़)  

Monday, March 21, 2011

माँ की तस्वीर

घर पर मजमा लगा हुआ है, सारे लोग माँ से मिलने आये हुए हैं. काफी दिनों के बाद माँ आई है न इसीलिए. करीब 2 साल के बाद और आई भी है तो सिर्फ 1 घंटे के लिए. इस छोटे से वक्फे में हर कोई माँ से जी भर के मिलना चाहते हैं और माँ भी. 

मेरी अजीब से कैफियत हो रही है, खुश भी हूँ के माँ आई है और खुश नहीं भी हूँ के माँ सिर्फ एक घंटे के लिए आई है और लोग उनको घेरे बैठे हैं जब के माँ को मेरे साथ होना चाहिए. आखिर मुझे भी तो माँ से बातें करनी हैं, उनके गोद में सर रख कर सोना है, इन 2 सालों में उन्हों ने क्या किया ये पूछना है और मैं ने क्या किया ये बताना है. बड़ी हिम्मत कर के जब मैंने माँ से कहा के क्या आप सिर्फ सबसे मिलती रहेंगीं? मुझे भी बहुत सारी बातें करनी है तो इसपर माँ ने कहा के तुम तो मेरी बेटी हो, तुम से मिलती ही रहूँगीं! मैं रो पड़ी, माँ ने मेरे आसूं पोछते हुए कहा के अच्छा बाबा जाने से पहले मैं 1 मिनट के लिए सिर्फ तुम्हारे साथ बैठूंगी और ये कह कर माँ फिर लोगों के बीच चली गेई. मैं रोते हुए अपने कमरे में चली गयी ये कहते हुए के सिर्फ 1 मिनट! मेरे लिए सिर्फ 1 मिनट!! और खूब रोने लगी.

सुबह उठी तो मेरा तकिया आंसुयों से भीग चूका था. समझ नहीं पा रही थी के मैं रो क्यूं रही थी? बहुत याद करने की कोशिश की के शाएद कोई बुरा ख्वाब तो नहीं देखा? लेकिन याद नहीं आया. 

रोज़ की तरह जब मैंने माँ की तस्वीर देखी जो दीवार पर टंगी है और उस तस्वीर से माँ कभी भी बाहर नहीं आ सकती!!     

तारिक हमीद (बेवक़ूफ़)